उत्तराखंड ने रचा इतिहास: समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य, विवादों के बीच ऐतिहासिक फैसला
उत्तराखंड ने रचा इतिहास: समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य, विवादों के बीच ऐतिहासिक फैसला

उत्तराखंड ने रचा इतिहास: समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य, विवादों के बीच ऐतिहासिक फैसला

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उत्तराखंड ने रचा इतिहास: समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य, विवादों के बीच ऐतिहासिक फैसला

उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू कर इतिहास रच दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस ऐतिहासिक कदम की घोषणा की, जिसे समानता और न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम बताया जा रहा है। हालांकि, इस फैसले ने कई पुरानी बहसों और विवादों को भी जन्म दिया है, जो यूसीसी को लेकर गहरे मतभेदों को उजागर करते हैं।

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) क्या है?

समान नागरिक संहिता का उद्देश्य धार्मिक शास्त्रों और परंपराओं पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों को हटाकर एक समान कानून लागू करना है, जो सभी भारतीय नागरिकों पर समान रूप से लागू हो। इसमें विवाह, तलाक, संपत्ति का उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे विषय शामिल हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में समानता सुनिश्चित हो।

यूसीसी विवादास्पद क्यों रहा?

संविधान निर्माण के समय से ही यूसीसी एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। इसके विरोध के पीछे कई कारण हैं:

  1. धार्मिक भावनाएं: कई समुदाय व्यक्तिगत कानूनों को अपनी धार्मिक पहचान का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। इसे बदलने का प्रयास उनके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर हमला माना जाता है।
  2. हाशिए पर जाने का डर: खासकर अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर मुस्लिम, आशंका जताते हैं कि यूसीसी उनके सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाओं को कमजोर कर सकता है।
  3. राजनीतिक ध्रुवीकरण: यह मुद्दा अक्सर राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया है, जिससे इसके पीछे की मंशा पर संदेह बना रहता है।
  4. सहमति की कमी: सभी पक्षों के बीच समावेशी संवाद की कमी ने आशंकाओं और विरोध को बढ़ावा दिया है।

अभी भी यूसीसी का विरोध क्यों हो रहा है?

उत्तराखंड के इस फैसले के बाद भी समाज का एक वर्ग यूसीसी का विरोध करता रहा है। इसके प्रमुख कारण हैं:

  • सांस्कृतिक विविधता का नुकसान: आलोचकों का कहना है कि समान कानून भारत की सांस्कृतिक विविधता को कमजोर कर सकता है।
  • लागू करने में चुनौतियां: संशयवादी सवाल उठाते हैं कि इतने विविध देश में समान कानून लागू करना कितना व्यावहारिक होगा।
  • स्पष्टता की कमी: विरोधियों का कहना है कि यूसीसी के प्रावधान अक्सर अस्पष्ट होते हैं, जिससे इसके दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है।

यूसीसी के पक्ष में तर्क

यूसीसी के समर्थक इसके लागू होने के पीछे कई कारण बताते हैं:

  1. लैंगिक समानता: कई धर्मों के व्यक्तिगत कानून महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण होते हैं। समान कानून सभी लिंगों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करता है।
  2. राष्ट्रीय एकता: यूसीसी हर नागरिक को कानून के तहत समान अधिकार देकर एकता की भावना को बढ़ावा देता है।
  3. कानूनों का सरलीकरण: एक समान कानून न्यायिक प्रणाली को अधिक कुशल बनाते हुए कानूनी जटिलताओं और विरोधाभासों को कम करता है।
  4. धर्मनिरपेक्षता का पालन: धर्म-आधारित कानूनों को खत्म करके, यूसीसी भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के साथ सामंजस्य बिठाता है।

आगे का रास्ता

हालांकि उत्तराखंड का कदम ऐतिहासिक है, लेकिन पूरे देश में यूसीसी लागू करना अभी भी दूर की कौड़ी लगता है। केंद्र सरकार को विभिन्न समुदायों की चिंताओं को दूर करने और विश्वास एवं समावेशिता का माहौल बनाने की आवश्यकता है। संवाद, जागरूकता अभियान और सभी हितधारकों से परामर्श यूसीसी की सफलता के लिए आवश्यक हैं।

उत्तराखंड द्वारा समान नागरिक संहिता को अपनाना एक ऐतिहासिक कदम है, जो अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल बन सकता है। हालांकि, यूसीसी से जुड़े विवाद और विरोध यह दर्शाते हैं कि इस मुद्दे पर संतुलित दृष्टिकोण की जरूरत है। यह सुनिश्चित करना कि यूसीसी समानता और न्याय के सिद्धांतों को कायम रखे, साथ ही भारत की सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करे, इस लंबे समय से चले आ रहे विवाद को हल करने की कुंजी है।

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