सीहोर। जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते। भगवान महादेव आपके विश्वास, भरोसे और मन की कोमलता से प्राप्त होते है। उक्त विचार जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में रविवार से आरंभ हुई सात दिवसीय शिव महापुराण के पहले दिन अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहे। कथा के पहले दिन ईसा और गौर की झांकी सजाई गई थी और उसके बाद आरती आदि का आयोजन किया गया।
पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि एक छोटा सा जीवन है मनुष्य का उस जीवन में हम कैसे भक्ति साधना कर सकते हैं जीवन को भक्तिपूर्ण बना सकते हैं ये शिवपुराण कथा बताती है। जैसे जैसे ईश्वर की भक्ति में डूबते जाओगे तब जीवन के आनंद की अनुभूति होगी। आपने शिव जी को एक लोटा जल चढ़ाया है तो वह आपका साथ कभी नही छोड़ते। क्योंकि यह शिव ही है, जो आपके साथ जीवित अवस्था में भी रहते हैं और मरने के बाद श्मशान में भी। इसलिए कहता हूं एक लोटा जल सब समस्या का हल। रविवार को करीब एक लाख से अधिक श्रद्धालु कथा का श्रवण करने पहुंचे थे। क्षेत्र के कार्यकर्ताओं, सेवादारों, शिवभक्तों और कार्यकर्ताओं का सहयोग रहा। वहीं ट्रैफिक, पार्किंग से लेकर बैठक और सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों ने योगदान दिया है।
श्रद्धालुओं के लिए कथा श्रवण के लिए लगाए तीन बड़े पंडाल
विठलेश सेवा समिति के मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि गुरुदेव के आदेश अनुसार इस वर्ष श्रद्धालुओं की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए यहां पर आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए समिति के व्यवस्थापक पंडित समीर शुक्ला आदि ने कथा स्थल पर तीन भव्य वाटर पू्रफ पंडाल बनाए गए है, जिससे धूप और बारिश से श्रद्धालु को कोई दिक्कत नहीं हो रही है। रविवार को एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने कथा का श्रवण किया और यहां पर भोजन प्रसादी आदि का वितरण किया गया।
इंसान से नहीं ईश्वर से जुडने का प्रयास करो
शिव महापुराण के पहले दिन भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि हम ईश्वर से संबंध बनाने की जगह इंसान से संबंध बनाने की कोशिश करते है, इसलिए इधर-उधर भटकते रहते है। इसलिए कर्म मार्ग में भी मनुष्य को निष्काम भाव से कर्म करना होता है। अपने कर्म को ईश्वर को समर्पित करना पड़ता है। इसलिए इसमें भी भटकने की पूरी संभावना होती है। वहीं भक्ति मार्ग में वह अपने आप को पूर्णतया ईश्वर भक्ति में समर्पित कर देता है। वह स्वयं को विचलित नहीं करता है। इसलिए भक्ति मार्ग में ईश्वर प्राप्ति की पूरी संभावना होती है।