ध्वनि प्रदूषण: धार्मिक अनुष्ठानों और कानूनी प्रावधानों पर बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला
हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की, जिसमें कहा गया कि लाउडस्पीकर का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। यह फैसला उन विवादों के बीच आया है, जहां धार्मिक आयोजनों में लाउडस्पीकर और ध्वनि प्रणाली के बढ़ते उपयोग के कारण ध्वनि प्रदूषण की समस्या गंभीर होती जा रही है।
ध्वनि प्रदूषण: समाज और पर्यावरण पर प्रभाव
- स्वास्थ्य पर असर:
- अत्यधिक ध्वनि से तनाव, सिरदर्द और नींद में बाधा हो सकती है।
- बच्चों, बुजुर्गों, और बीमार व्यक्तियों पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है।
- पर्यावरणीय नुकसान:
- पक्षियों और जानवरों के व्यवहार और प्रजनन पर नकारात्मक प्रभाव।
- प्राकृतिक ध्वनि संतुलन बिगड़ने के कारण जैव विविधता पर खतरा।
भारतीय कानून और ध्वनि नियंत्रण के नियम
ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए भारत में कई कानून और नियम बनाए गए हैं:
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986:
- आवासीय क्षेत्रों में दिन के समय ध्वनि स्तर: 55 डेसिबल।
- रात के समय ध्वनि स्तर: 45 डेसिबल।
- ध्वनि प्रदूषण (नियंत्रण और विनियमन) नियम, 2000:
- रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर के उपयोग पर प्रतिबंध।
- विशेष अनुमति के बिना सार्वजनिक स्थानों पर ध्वनि प्रणाली का उपयोग अवैध।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 268 और 290:
- ध्वनि प्रदूषण को सार्वजनिक असुविधा मानते हुए दंड का प्रावधान।
समाधान और समाज की भूमिका
- जागरूकता अभियान:
ध्वनि प्रदूषण के खतरों को लेकर लोगों को शिक्षित करना। - आधुनिक तकनीक का उपयोग:
धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में साइलेंट साउंड सिस्टम या FM ट्रांसमीटर जैसी तकनीक अपनाना। - सामुदायिक भागीदारी:
सामूहिक प्रयासों के माध्यम से ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण। - इलाहाबाद हाई कोर्ट (2022):
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि लाउडस्पीकर का उपयोग मौलिक अधिकार नहीं है। यह आदेश तब आया जब धार्मिक स्थलों में लाउडस्पीकर के उपयोग को लेकर विवाद हुआ।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का पालन अनिवार्य है।
- धार्मिक स्वतंत्रता का मतलब अन्य लोगों की शांति भंग करना नहीं है।
- सुप्रीम कोर्ट का आदेश (2005):
सुप्रीम कोर्ट ने ध्वनि प्रदूषण (नियंत्रण और विनियमन) नियम, 2000 को लागू करने का निर्देश दिया था।
- रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर और साउंड सिस्टम के उपयोग पर रोक लगाई गई थी।
- धार्मिक स्थलों, बारात, और राजनीतिक रैलियों में ध्वनि सीमा का उल्लंघन करने वालों पर दंड लगाने का प्रावधान किया गया।
- कर्नाटक हाई कोर्ट (2018):
कर्नाटक हाई कोर्ट ने स्कूलों, अस्पतालों और आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण पर सख्त निर्देश दिए।
- धार्मिक आयोजनों में लाउडस्पीकर के उपयोग को सीमित करने और अनुमति लेने की अनिवार्यता पर जोर दिया।
- उल्लंघन करने पर आयोजकों पर जुर्माने और उपकरण जब्त करने का आदेश दिया।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- 1972 का वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम:
इसमें ध्वनि प्रदूषण को पर्यावरणीय अपराध के रूप में पहचाना गया। - सार्वजनिक स्थान अधिनियम:
सामुदायिक स्थलों पर शोर नियंत्रण के लिए विशेष प्रावधान।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
ध्वनि प्रदूषण को लेकर अन्य देशों में भी सख्त नियम हैं:
- जर्मनी: धार्मिक स्थलों में ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कड़े नियम।
- अमेरिका: शहरी क्षेत्रों में 24 घंटे ध्वनि सीमा लागू।
- जापान: ध्वनि प्रदूषण के लिए तकनीकी उपाय और स्वचालित निगरानी।
लोगों की भूमिका और उदाहरण:
- सामाजिक जागरूकता अभियान:
धार्मिक और सामाजिक संगठनों को नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करना। - सफल प्रयास:
कुछ समुदायों ने साइलेंट डिस्को तकनीक और वायरलेस स्पीकर का उपयोग कर सकारात्मक उदाहरण पेश किए हैं।
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला ध्वनि प्रदूषण पर समाज को सचेत करने और पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाने का एक प्रेरणादायक कदम है।
“आइए, ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करके एक शांतिपूर्ण और स्वस्थ समाज का निर्माण करें।”