एक देश, एक चुनाव: पहली जेपीसी बैठक में चर्चा, विपक्ष ने जताया विरोध
देश में चुनाव सुधार की दिशा में एक बड़ी पहल के रूप में प्रस्तावित “एक देश, एक चुनाव” की पहली संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की बैठक हाल ही में आयोजित हुई। इस बैठक की अध्यक्षता सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक वरिष्ठ नेता ने की, जहां इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की गई।
बीजेपी का पक्ष:
बीजेपी ने “एक देश, एक चुनाव” को देशहित में आवश्यक बताया। उनका मानना है कि बार-बार चुनाव होने से प्रशासनिक कार्य प्रभावित होते हैं और सरकारी संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है। यह मॉडल न केवल समय की बचत करेगा, बल्कि चुनावी खर्च को भी कम करेगा।
बीजेपी के अनुसार, यदि यह मॉडल लागू होता है तो देश में राजनीतिक स्थिरता आएगी, जिससे विकास योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन में मदद मिलेगी। उनका यह भी कहना है कि इससे जनता का ध्यान बार-बार के चुनावी प्रचार से हटकर विकास कार्यों पर केंद्रित होगा।
विपक्ष की आपत्तियां:
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (एसपी), और अन्य विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। कांग्रेस ने इसे संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ बताते हुए कहा कि यह संघीय ढांचे को कमजोर करेगा।
समाजवादी पार्टी ने तर्क दिया कि “एक देश, एक चुनाव” का विचार राज्यों के अधिकारों पर हमला है। उन्होंने सवाल उठाया कि राज्यों को अपनी विधानसभा भंग करने के लिए बाध्य करना संघवाद की भावना के खिलाफ है।
विपक्ष ने इस बात पर भी जोर दिया कि अलग-अलग समय पर चुनाव होने से लोकतंत्र में जनता की भागीदारी बढ़ती है और यह सरकारों को जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनाता है।
विशेषज्ञों की राय:
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि “एक देश, एक चुनाव” एक क्रांतिकारी विचार है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं है। इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, साथ ही सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनानी होगी।
कई विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इस मॉडल को लागू करने के लिए प्रशासनिक और तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इसमें ईवीएम और वीवीपैट की पर्याप्त उपलब्धता, सुरक्षा व्यवस्था, और चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करना बड़ी चुनौती होगी।
“एक देश, एक चुनाव” का विचार अभी प्रारंभिक चर्चा के दौर में है। जहां एक ओर यह प्रस्ताव देश के विकास के लिए एक नई दिशा की ओर इशारा करता है, वहीं दूसरी ओर इसके विरोध में मजबूत तर्क भी सामने आ रहे हैं।
इसका अंतिम निर्णय जनता और राजनीतिक दलों के सामूहिक सहयोग पर निर्भर करेगा। लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करते हुए यदि इस प्रस्ताव को लागू किया जा सके, तो यह देश की राजनीति में एक ऐतिहासिक बदलाव ला सकता है।