काम के घंटे, गिग इकॉनमी और भारतीय युवाओं का भविष्य: क्या 90 घंटे काम करना सही है?
काम के घंटे, गिग इकॉनमी और भारतीय युवाओं का भविष्य: क्या 90 घंटे काम करना सही है?

काम के घंटे, गिग इकॉनमी और भारतीय युवाओं का भविष्य: क्या 90 घंटे काम करना सही है?

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काम के घंटे, गिग इकॉनमी और भारतीय युवाओं का भविष्य: क्या 90 घंटे काम करना सही है?

ऑफिस में काम करते हुए मौत का एक मामला कुछ दिन पहले सामने आया था जो काम के दबाव को दिखता था साथ ही एक डिलीवरी बॉय की मौत भी गाड़ी में बैठे हुए होने का विडियो तो शायद आप तक तो पंहुचा ही होगा| हाल ही में दीपिका पादुकोण ने एलएंडटी के सीईओ एसएन सुब्रमण्यन के उस बयान पर प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने 90 घंटे काम करने को सही ठहराया था। यह बयान तब आया जब कुछ समय पहले इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी। इन टिप्पणियों ने एक पुरानी बहस को फिर से जन्म दिया—क्या लंबी वर्किंग ऑवर्स देश की प्रगति और व्यक्तिगत संतुलन के लिए सही हैं?

यह बहस कहां से शुरू हुई?

वर्किंग ऑवर्स को लेकर बहस 20वीं सदी में तब शुरू हुई जब औद्योगिक क्रांति के दौरान श्रमिकों को 12-14 घंटे काम करना पड़ता था। इसके खिलाफ आवाज उठाने के बाद 8 घंटे काम करने का नियम लागू हुआ। लेकिन अब गिग इकॉनमी, रिमोट वर्क, और मूनलाइटिंग जैसे आधुनिक ट्रेंड्स ने इस बहस को नई दिशा दे दी है।

बढ़ते घंटों पर प्रमुख टिप्पणियां

  1. नारायण मूर्ति का बयान:
    उन्होंने कहा कि अगर भारत को चीन और अन्य विकसित देशों से आगे निकलना है, तो युवाओं को हफ्ते में 70 घंटे काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए। उनका मानना है कि इस प्रयास से ही देश तेज विकास कर सकता है।

  2. दीपिका पादुकोण का मत:
    उन्होंने कहा कि काम और जीवन के बीच संतुलन बनाना बहुत जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि अधिक घंटे काम करने से न केवल मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, बल्कि यह रचनात्मकता को भी बाधित कर सकता है।

  3. अन्य विशेषज्ञों की राय:

    • कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ मानते हैं कि लंबे समय तक काम करने से तनाव और बर्नआउट बढ़ता है।
    • वहीं, कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का तर्क है कि गिग इकॉनमी और फ्रीलांस मॉडल में युवाओं को लंबे घंटे काम करना पड़ता है, लेकिन यह उन्हें अधिक अवसर भी देता है।

भारत में बढ़ती गिग इकॉनमी और मूनलाइटिंग

भारत में गिग इकॉनमी तेजी से बढ़ रही है, जहां लोग एक ही समय पर कई नौकरियां कर रहे हैं।

  • मूनलाइटिंग (एक साथ दो या अधिक नौकरियां करना) युवाओं के लिए एक नया ट्रेंड बनता जा रहा है, खासकर बढ़ती महंगाई और जीवनशैली के खर्चों को देखते हुए।
  • हालांकि, कई कंपनियां इसे कर्मचारियों की उत्पादकता और निष्ठा के खिलाफ मानती हैं।

इस बहस में युवाओं का क्या रुख होना चाहिए?

  1. संतुलन बनाना जरूरी:
    युवाओं को अपने करियर और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाना चाहिए।

  2. कौशल विकास पर ध्यान दें:
    बढ़ते प्रतिस्पर्धा के दौर में केवल अधिक घंटे काम करना नहीं, बल्कि सही कौशल और उत्पादकता मायने रखती है।

  3. स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें:
    लंबे घंटे काम करने से पहले यह सुनिश्चित करें कि यह आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचाए।

  4. टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करें:
    समय बचाने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों और उपकरणों का उपयोग करें।

काम के घंटे बढ़ाने की यह बहस विकास और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को उजागर करती है। जहां एक तरफ लंबी वर्किंग ऑवर्स देश की अर्थव्यवस्था को तेज कर सकते हैं, वहीं दूसरी तरफ यह युवाओं के स्वास्थ्य और रचनात्मकता के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

“भारत जैसे तेजी से बढ़ते देश में, युवाओं को अधिक काम करने के साथ-साथ स्मार्ट काम करने की ओर भी ध्यान देना चाहिए।”

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