द्वंद क्या है? द्वंद के प्रकार द्वंद से बचाव

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संघर्ष हर इंसान को करना पड़ता है चाहे वह राजा हो या भिखारी चाहे वह इंसान हो या जानवर संघर्ष हर किसी को करना पड़ता है। जैसे कि एक कुत्तिया के छह बच्चे हैं और कुछ दिनों बाद उसकी मां का दूध ना हो और वह अपने बच्चों का पेट ना भर सके तो वह बच्चे दूध पिए बिना मर सकते हैं। लेकिन उनमें जो बच्चा संघर्ष करता है और अपने जीवन से लड़ता है । अपने लिए भोजन का जुगाड़ करता है और आने वाली कठिनाइयों का सामना करता है तो वही बच पाता है संघर्ष इसे ही कहते हैं ।
संघर्ष के अनेक रूप हो सकते हैं
1. एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ संघर्ष
2. व्यक्ति का उसके वातावरण के साथ संघर्ष
3. पारिवारिक संघर्ष
4. संस्कृतिक संघर्ष
इससे सबसे कहीं अधिक गंभीर और भयानक है आंतरिक या मानसिक संघर्ष । इसमें व्यक्ति के विचारों संवेग इच्छाओं भावनाओं अर्थात स्वयं से संघर्ष तब व्यक्ति असहाय महसूस करता है।

चलिए हम बात करते हैं मानसिक संघर्ष क्या है यह कितने प्रकार का होता है:

मानसिक संघर्ष या विचारों का संघर्ष
या पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों होता है। व्यक्ति को लक्ष्य प्राप्ति के दौरान कई बधाओ का सामना करना पड़ सकता है । कई विकल्पों में से किसी एक विकल्प को चुनना तथा लक्ष्य प्राप्ति के बाद भी अनेक बधाएं उत्पन्न हो सकती हैं जिससे मानसिक द्वंद या संघर्ष उत्पन्न होता है। संघर्ष की अवस्था जब उत्पन्न होती है तो व्यक्ति में संवेगात्मक तनाव उत्पन्न होता है जिस व्यक्ति की मानसिक शांति नष्ट हो जाती है व्यक्ति किसी भी निर्णय तक पहुंचने में असमर्थ होता है।

आंतरिक या मानसिक संघर्ष तीन तरह के होते हैं
1.Approach- Approach:-जब हमें अर्थशास्त्र और इतिहास विषय दोनों एक साथ पसंद हो और दोनों विषयों में से किसी एक विषय को चुनना पड़े तो यहां द्वंद उत्पन्न होता है मानसिक संघर्ष उत्पन्न होता है क्योंकि दोनों विषयों में से किसी एक विषय को चुना हमारे लिए डिफिकल्ट हो जाता है
2.Avoidance-Avoidance:- यह अवस्था तब उत्पन्न होती है जब हम पढ़ना भी नहीं चाहते और फेल भी नहीं होना चाहते ।
3.Approach- Avoidance यह व्यवस्था सकारात्मक और नकारात्मक दोनों अवस्था है। हम कक्षा में टॉप भी करना चाहते हैं और अधिक परिश्रम भी नहीं करना चाहते तो यह अवस्था approach- avoidance की है।

  1. संघर्ष से संघर्ष से बचने के उपाय:
    मन का कथन है निरंतर रहने वाले वाला संघर्ष कष्टदायक होने के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है।
    1. बालकों को निराशाओं और असफलताओं का सामना करने के प्रशिक्षित प्रशिक्षण देना चाहिए।
    2. चिंता से उत्पन्न होने वाली मानसिक और संवेगात्मक संघर्षों का निवारण करने के लिए बालकों की मानसिक चिकित्सा की जानी चाहिए ।
    3. परिवार और विद्यालय का वातावरण समझदारी और विवेक पर आधारित होना चाहिए।
    4. परिवार और विद्यालय के वातावरण में किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए क्योंकि तनाव संवेगों में उथल-पुथल मचाकर संघर्षों को जन्म देता है

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